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बरसाना के अनेक नाम हैं, जैसे रस की वर्षा होने के कारण ‘बरसाना’, श्रेष्ठ पर्वत चोटी होने के कारण ‘वरसानु’ वृषभानु की राजधानी होने के कारण ‘वृषभानुपुर’ और hबड़ी शिखर होने के कारण ‘वृहत्सानु’ ।

यद्यपि वृन्दावन में ही बरसाना है किन्तु श्रीजी के स्थाई निवास के कारण यहीं से सम्पूर्ण वृन्दावन रसमय बनता है

चिंतामणिः प्रणमतां ब्रजनागरीणां चूड़ामणिः कुलमणि र्वृषभानुनाम्नः ।
सा श्याम-कामवरशान्तिमणि र्निकुञ्जभूषामणि र्हृदयसम्पुटसन्मणिर्नः ॥
(रा.सु.नि.२६)

केवल प्रणाम करने से जो चिंतित वस्तुओं का दान करने वाली, ब्रज देवियों की शिरस्थ चूड़ामणि, वृषभानु वंश की कुलमणि, निखिल रसामृत मूर्ति श्रीकृष्ण की विरह-शामिनी शांतिमणि, निकुञ्ज भवन की शोभामणि हैं; वे किशोरीजी हम सभी के हृदय की अमूल्यमणि जिस बरसाने में विराजती हैं, उस वृषभानपुर की दिशा को प्रणाम है

“तस्या नमोऽस्तु वृषभानुभुवो दिशेऽपि”
(रा.सु.नि.१)

यद्यपि पञ्चयोजन अर्थात् २० कोस (६० कि.मी) वृन्दावन सभी रसमय है किन्तु उस सम्पूर्ण वृन्दावन में व्यास जी को श्रीकृष्ण नहीं मिले किन्तु बरसाना रूपी वृन्दावन में मिल गये –

लागी रट राधा-राधा नाम ।
ढूंढ़ि फिरी वृन्दावन सबरो नन्द डिठोना श्याम ॥
कै मोहन कै खोर साँकरी कै मोहन नंदगाँव ।
‘व्यास दास’ की जीवन राधे धनि बरसानो गांव ॥

बरसाने के वास की आस करें शिव शेष

ताकि महिमा को कहे जंहा कृष्ण धरें सखी भेष

मेरो कान्हा गुलाब को फूल किशोरी मेरी कुसुम कली

कान्हा मेरो नंद ज़ू को छोंना श्री राधे बृषभानु लली

किशोरी मेरी कुसुम कली

श्री बृषभानु दुलारि श्री राधा ज़ू प्यारी

बरसाने वारी के नैन काजर बिनु कारे, नैन काजर बिनु कारे

जय मंजुल कुंज निकुंजन की रस पुंज विचित्र समाज की जय जय

यमुना तट की वंशी वट की गिरिजेश्वर की गिरिराज की जय जय

 

सब द्वारन कूँ छोड़ के मैं तो आयो तेरे द्वार

अहो भानु की लाड़ली निक मेरी ओर निहार

 

राधे तेरे चरणों की श्यामा तेरे चरणों की

रज धूल जो मिल जाए

सच कहती हूँ प्यारी तक़दीर बदल जाए

तेरे चरणों में हो जीवन की शाम

किशोरी यही माँग मेरी

 

श्री राधा श्री राधा श्री राधा राधा

श्री राधा श्री राधा श्री राधा राधा

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