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सदाशिव सर्व वरदाता

सदाशिव सर्व वरदातादिगम्बर हो तो ऐसा हो,

       हरे सब दुःख भक्तों केदयाकर हो तो ऐसा हो।

शिखर कैलाश के ऊपर, कल्पतरुओं की छाया में,

       रमे नित संग गिरिजा के, रमणधर हो तो ऐसा हो।

शीश पर गंग की धारासुहाए भाल पर लोचन,

       कला मस्तक पे चन्दा कीमनोहर हो तो ऐसा हो।

भयंकर जहर जब निकलाक्षीरसागर के मंथन से,

       रखा सब कण्ठ में पीकरकि विषधर हो तो ऐसा हो।

सिरों को काटकर अपनेकिया जब होम रावण ने,

       दिया सब राज दुनियाँ कादिलावर हो तो ऐसा हो।

बनाए बीच सागर केतीन पुर दैत्य सेना ने,

       उड़ाए एक ही शर सेत्रिपुरहर हो तो ऐसा हो।

देवगण दैत्य नर सारेजपें नित नाम शंकर जो,

       वो ब्रह्मानन्द दुनियाँ मेंउजागर हो तो ऐसा हो॥

मारे मत मइया

मारे मत मइया, वचन भरवाय लै

वचन भरवाय लै, सौगन्ध खवाय लै।

गंगा की खवाय लै, चाहे जमुना की खवाय लै

क्षीर सागर में मइया ठाड़ो करवाय लै ॥ मारे मत मइया ——

गइया की खवाय लै, चाहे बछड़ा की खवाय लै

नन्द बाबा के आगे ठाड़ो करवाय लै ॥ मारे मत मइया ——

गोपिन की खवाय लै, चाहे ग्वालन की खवाय लै

दाऊ भइया के आगे कान पकराय लै ॥ मारे मत मइया ——

बंसी की खवाय लै, चाहे कामर की खवाय लै

मेरे अपने सिर पे हाथ धर के कहवाय लै ॥ मारे मत मइया ——

इकली घेरी बन में आय

इकली घेरी बन में आय श्याम तूने कैसी ठानी रे |

श्याम मुझे वृन्दावन जाना

     लौट कर बरसाने आना

          हाथ जोड़ूँ मानो कहना

जो मुझे हो जाए देरलड़े द्योरानी-जिठानी रे || इकली घेरी —–

ग्वालिनी मैं समझाऊँ तुझे

     दान तू दधि का दे जा मुझे

          तभी ग्वालिन जाने दूँ तुझे

जो तू नहीं माने तो होगी ऐंचातानी रे || इकली घेरी —–

दान मैंने कभी नहीं दीना

     रोक मेरा मारग क्यों लीना

          बहुत सा ऊधम तुम कीन्हा

आज तलक इस ब्रज में ऐसा हुआ न सानी रे || इकली घेरी —–

ग्वालिनी बातें रही बनाय

     ग्वाल-बालों को लूँ मैं बुलाय

          तेरा सब दधि-माखन लुट जाय

इठला ले तू भलेचले-न तेरी मनमानी रे || इकली घेरी —–

कंस राजा से करूँ गुहार

     बँधा के फिर लगवाऊँ मार

          तेरी ठकुराई देऊँ निकार

जुल्मी फिर तू डरेहरे ना नार बिरानी रे || इकली घेरी —–

कंस क्या बलम लगे तेरा

     वो चूहा क्या कर ले मेरा

          गर कभी उसको जा घेरा

कर दूँगा निर्वंशमिटा दूँ नाम-निशानी रे || इकली घेरी —–

आ गए इतने में सब ग्वाल

     पड़े नैनों में डोरे लाल

          झूम के चले अदा की चाल

लुट गया माखन मारग मेंघर गई खिसियानी रे || इकली घेरी —–

करें लीला जो राधेश्याम

     कौन कर सके बखान तमाम

          जाऊँ बलिहार धन्य ब्रजधाम

कहते सारे ग्वालनन्द का है सैलानी रे || इकली घेरी —–

हमारी गली होते जाना

हमारी गली होते जानाओ प्यारे नंदलाला |
मोर मुकुट पीतांबर सोहेगले में मोहनमाला, हमारी गली ——–

हाथ लकुटिया अधर बँसुरियाओढ़े कंबल कालाहमारी गली ——–

श्याम रंग और नैन रसीलेगउओं का रखवालाहमारी गली ——–

चुरा-चुरा कर माखन खाए झगड़ रहीं ब्रजबालाहमारी गली ——–

वृन्दावन की कुंज गलिन में नित-नित डाका डालाहमारी गली ——–

कालिय दह में कूद के मोहननाग नाथ दिया कालाहमारी गली ——–

फन के ऊपर नाच बजाई बंसी की धुन आलाहमारी गली ——–

चीर चुरा कर चढ़े कदम परखेला खेल निरालाहमारी गली ——–

चंद्र सखी भज कृष्ण-कन्हैया राधा का मतवालाहमारी गली ——–

 मेरी भाव-बाधा हरोराधा नागरी सोय। जा तन की झाईं पड़ेश्याम हरित दुत होय।

में हरित (हरामुदित) शब्द में श्लेष किया हैवहाँ इस गीत में मन शब्द में श्लेष है। मन का अर्थ हृदय भी होता है व भार का एक मात्रक भी जो लगभग 37.324 किलोग्राम होता है। जहाँ बिहारी ने दो रंगों (राधा का गोरा तथा कृष्ण का काला), को मिला कर एक तीसरा रंग बनाया है, वहाँ इस गीत में तो तीन रंगों (गुजरी का गोरा, यमुना का नीला तथा स्वर्ण-कलश का पीला) को मिलाकर रूप की त्रिवेणी बना दी गई है। यहाँ त्रिवेणी शब्द में भी श्लेष है: रंगों का मिलाप तथा गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम की भाँति रूप का संगम-पर्व।

अरे वह पनघट पे बटमार गुजरिया जादू कर गई रे |
    चित में वह चितवन चुभा और बाँकी भौंह मरोड़
    वह चितई चितवन चुभा और संग में भौंह मरोड़
       इठला के शरमाय के वह मुसकाई मुँह मोड़
       कलेजे बिजली गिर गई रेहिया पे बिजली गिर गई रे || गुजरिया जादू —–
              अरे वह पनघट पे ———————

    जमुना में गागर ड़ुबा और इधरउधर को झाँक
    मेरा मन हर ले गईअरे मेरा मन हर ले गई
       और दे गई नहीं छटाँकलूट पनिहारी कर गई रे || गुजरिया —–
              अरे वह पनघट पे —————–

    गुण गरवीली गोरकी, अरे कुछ गरवीली गूजरी
    और कुछ गागर में भारअरे कुछ गागर में भार
              झीनी कटि लटलट करेअरे पतली कमर लचपच करे
              हे राम लगाना पारभँवर में नैया पड़ गई रे  ||    गुजरिया जादू —–

              अरे वह पनघट पे —————–

    नील वरन यमुना इधरऔर उधर वो गोरी नार
    नीला रंग यमुना इधरऔर उधर वो गोरी नार
              कंचन कलसा शीश परअरे कंचन कलसा शीश पर
             लो बनी त्रिवेणी धाररूप की परवी पड़ गई रे || गुजरिया जादू —–
              अरे वह पनघट पे —————

राधा की छवि देख

टिप्पणी: अभी राधा रानी अल्हड़ हैं। अभी तो वे कृष्ण के प्रणय-निवेदन का न अर्थ जानती हैं न मर्म। और कृष्ण?वे तो राधा रानी को देखते ही मचल पड़े हैं। लुभा रहे हैं उन्हें। राधा की काली चितवन को अपनी काली काँवर से जोड़ रहे हैं। उन्हें पाने को कुछ भी करने को तत्पर हैं। गा देंगेबजा देंगेनाच देंगे, ब्याह कर आँखों का काजल बनाकर भी रख लेंगे! धन्य हो कृष्ण-कन्हैयाधन्य-धन्य!

राधा की छवि देखमचल गए साँवरिया |
हँसमुसकाय प्रेम रस चक्खूँ
नैनन में तुझे ऐसे रक्खूँ
ज्यों काजर की रेख,
पड़ेंगी तोसे भाँवरिया  

 राधा की छवि —–

तू गोरी वृषभानदुलारी
मैं काला मेरी चितवन कारी
काला ही मेरा भेष
के कारी कामरिया 

राधा की छवि —–

मैं राधा तेरे घर आऊँ
अँगना में बाँसुरी बजाऊँ
नृत्य करूँ दिल खोल
कमल-पे जैसे भामरिया ।।

राधा की छवि —–
अपनी सब सखियाँ बुलवा ले
हिलमिल के मोसे नाच नचा ले
गढ़ें प्रेम की मेख
झनन बोले पायलिया ॥

राधा की छवि —–
बरसाने की राधा प्यारी
वृन्दावन के कृष्ण मुरारी
सुख-सागर में खेल तू ग्वालिन गामरिया ॥

राधा की छवि —–

कन्हैया तेरी फिर-फिर जात सगाई

कन्हैया तेरीओ हो रेकन्हैया तेरीफिर-फिर जात सगाई

सो लाला तेरीफिरफिर जात सगाई।
बरसाने वृषमानु-नंदिनीबरसाने वृषमानुनंदिनीवहाँ तेरी बात चलाई
देखत सुनत तेरे अवगुनअरे देखत सुनत तेरे अवगुन,
उन फेरे बामन नाई ||

सो लाला तेरी —–
दूध दही घर में बहुतेरादूध दही घर में बहुतेरामाखन और मलाई
खा ले पी ले और लुटा लेखा ले पी ले और लुटा ले,
चोरी छोड़ कन्हाई ||

 सो लाला तेरी —–
कन्हैया तेरीफिरफिर जात सगाई ||

कोई माखन ले लो

कोई माखन ले लोओ हो जीकोई माखन ले लोगुजरी तो आई बरसाने से ||

बलम हमारा भोला भालाबलम हमारा भोला भालाससुर हमारा अंधा

सास निगोड़ी ने सर पर धरसास निगोड़ी ने सर पर धर दिया बेचन का धंधा || 

कोई माखन ——-

जो घर खाली लौट के जाऊँजो घर खाली लौट के जाऊँमारे नन्द निगोड़ी

माई बाप मेरे जनम के बैरीमाई बाप मेरे जनम के बैरीजो ऐसे घर छोड़ी || 

कोई माखन ——–

माखन बेचूँ मिसरी बेचूँमाखन बेचूँ मिसरी बेचूँऔर दूध का छेना

मीठे मीठे लड्डू बेचूँमीठे मीठे लड्डू बेचूँमन चाहे सो लेना || 

कोई माखन ——–

कान्हा जी का भोग लगा हैकान्हा जी का भोग लगा हैयह माखन ले जाओ

खुद खाओ औरौ को खिलाओखुद खाओ औरौ को खिलाओभवसागर तर जाओ || 

कोई माखन ——

श्यामा श्याम सलौनी सूरत

श्यामा श्याम सलौनी सूरत का सिंगार बसन्ती है

मोर मुकुट की लटक बसन्तीचंद्रकला की चटक बसन्तीमुख मुरली की मटक बसन्ती,

सिर पै पैंच श्रवण-कुंडल छविदार बसंती है || 

श्यामा श्याम——-

माथे चन्दन लगा बसंतीपट पीताम्बर कसा बसन्तीपहना बाजूबंद बसन्ती

गुंजमाल गल सोहैफूलनहार बसन्ती है ||

श्यामा श्याम——

कनक कडूला हाथ बसन्तीचले चाल अलमस्त बसन्तीपहन रहे पोशाक बसन्ती,

रुनक-झुनक पग नूपुर की झनकार बसन्ती है ||

 श्यामा श्याम——-

संग ग्वाल की टोल बसन्तीबजे चंड्ग छप ढोल बसन्ती,बोल रहे हैं बोल बसन्ती

सब सखियन में राधेजी सरदार बसन्ती हैं || 

श्यामा श्याम———

दध बेचें सुघड़ ब्रजनार

टिप्पणी: ब्रज भाषा के गीत हों और राधा-कृष्ण-गोपियों के वृतान्त न होंइस मधुर लय वाले कहानी-गीत में एक नव-विवाहिता गोपी का प्रसंग है जो कृष्ण से अनभिज्ञ है। गोपी सास की शिक्षा को नकारसोलह सिंगार कर दही बेवने निकलती है। रोकी जाने पर गोपी कृष्ण को छोटी जाति का अहीर बताकर दुतकारती है। (वह स्वयं तो उच्च गुर्जर जाति की है भाई।) गोपी का अज्ञान तथा कृष्ण का अन्याय देखते ही बनता है। बताओनव-विवाहिता को आत्मज्ञान देने लग गए!

दध  बेचें सुघड़ ब्रजनारसो दध बेचन हरे हरेसो दध बेचन निकलीं |

सास कहे सुन मेरी बहुअर दध बेचन मत जा ——2

राह में कान्हा धेनु चरावेतोड़े नौलखा हार

झपट लेगा हरे हरे झपट लेगा नथ दुलरी || दहि बेचें सुघड़ ब्रजनार ——

बहू कहे सुन मेरी सासुल दहि बेचन मैं जाऊँ——-2

उस कान्हा की मति हर लाऊँलखे जो नौलखा हार

छुए जो मेरी हरे हरे छुए जो मेरी नथ दुलरी || दहि बेचें सुघड़ ब्रजनार ——

बरसाने से चली गुजरिया कर सोलह सिंगार—- 2

बाल बाल गज-मोती पोएपहना नौलखा हार

पहन लीनी हरे हरे पहन लीनी नथ दुलरी || दहि बेचें सुघड़ ब्रजनार ——

बंसी-बट के बीच कन्हैया खड़े चरावें गाएँ——2

मोर-मुकुट सिर ऊपर सोहेगल वैजंती माल

अधर सोहे हरे हरे अघर पे लागी मुरली || दहि बेचें सुघड़ ब्रजनार ——

कान्हा को लख कहे गुजरियादेखन में तो नीक

भले घरन का लागे फिर भीकाम करे क्यों नीच

दही की माँगे हरे हरे दही की क्यों माँगे तू भीख || दहि बेचें सुघड़ ब्रजनार 

भीख तो माँगूँ प्रेम की तेरेमत कर पाँच और तीन ——2

अपने दहि का भोग लगा देनहीं तो लूँगा मैं छीन

बखेरूँ यहीं हरे हरे बखेरूँ तेरी सारी गगरी || दहि बेचें सुघड़ ब्रजनार ——

छीना-झपटी मत कर कान्हाफाटे मेरा चीर—- 2

मैं चन्द्रावल गूजरी कहिए तेरी तो जात अहीर

के तेरी-मेरी हरे हरे के तेरी-मेरी नाहीं बने || दहि बेचें सुघड़ ब्रजनार ——

दूध-दही का दान जो लूँगादूँगा तुझको ज्ञान——- 2

मैं हूँ पुरुष और तू है प्रकृतिसोच जरा धर ध्यान

दिखेंगे तुझे हरे हरे दिखेंगे तुझे हरी गुजरी || दहि बेचें सुघड़ ब्रजनार ——

चन्द्र सखी लख रास रचैया बार-बार बलिहार —- 2

मथुरा जी में जनम लिया और नाचें ब्रज के मँझार

धन्य हुए हरे हरे धन्य हुए ग्वाल गुजरी || दहि बेचें सुघड़ ब्रजनार ——

Shree Ji Barsana Mandal Trust (SJBMT)