श्री राधे
“श्रील नारायण भट्ट ज़ू जयति”
“श्री नारायण दास गोस्वामी जयति”
??आज की ब्रज रस धारा
दिनांक 14/06/2018
राधा रानी जी की अष्टसखियाँ
राधा रानी भगवान कृष्ण की प्राणप्रिया है. ब्रज मंडल की अधिष्ठाती देवी है.
उनकी कृपा के बिना कोई ब्रज में प्रवेश नहीं कर सकता है. जिस पर राधा रानी की कृपा कर दें वो ना चाहते हुए भी ब्रज में पहुँच जाता है.
सारी गोपियाँ उनकी कायरूपा व्यूहा है. उनकी कांति से सब प्रकट हुई है. उनकी सखियों मे कई यूथ है.
गोपियों के किंकरी , मंजरी, सहचरी ये अलग-अलग है. सब की आराध्य श्री राधारानी जी है.
भगवान से गोपिया कह देती है. कि हम आपको नहीं पूजते हम तो राधा जी को पूजते है और आपके उनके प्रियतम हो इसलिए आप हमें प्यारे हो.
और नित्य सखियाँ राधा जी और श्याम सुन्दर की सेवा में लगी रहती है.
सबकी अलग-अलग सेवाँए है. राधा जी के यूथ में मुख्य आठ सखियाँ कही गई है. जो राधारानी जी की “अष्टसखियाँ “ कहलाती है,
राधा की परम श्रेष्ठ सखियाँ आठ हैं-
१. – ललिता
२. – विशाखा,
३. – चम्पकलता,
४. – चित्रा,
५. – सुदेवी
६. – तुंगविद्या,
७. – इन्दुलेखा,
८. – रग्डदेवी
और अलग-अलग संमप्रदाय में इनके अलग नाम आते है. इनके नाम जैसे चित्रा जी सुदेवी ,इन्दुलेखा के नाम क्रमशः सुमित्रा, सुंगदेवी इन्दुरेखा के नाम है.
राधा जी ये ही अष्टसखी है. राधा जी के प्रति इन सब की भी प्रधान सेवाँए है.
ये अष्ट सखियाँ पाँच प्रकार की होती हैं-
१. सखी – (कुसुमिका, विद्या आदि) ,
२. नित्य सखी – (कस्तूरिका, मणिमंजरिका आदि),
३. प्राणसखी – (शशिमुखी, वासन्ती आदि),
४. प्रिय सखी – (कुरगांक्षी, मदनालसा, मंजुकेशी, माली आदि) तथा
५. परम श्रेष्ठ सखी- ये अष्टसखियाँ सब गोपियों में अग्रगण्य है।
इनकी एक-एक सेविका भी हैं, जो मंजरी महलाती हैं। मंजरियों के नाम ये हैं-
१. – रूपमंजरी,
२. – जीवमंजरी,
३. – अनंगमंजरी,
४. – रसमंजरी,
५. – विलासमंजरी,
६. – रागमंजरी,
७. – लीलामंजरी और
८. – कस्तूरीमंजरी।
इनके नाम-रूपादि के विषय में भिन्नता भी मिलती है। ये सखियाँ वस्तुत: राधा से अभिन्न उन्हीं की कायव्यूहरूपा हैं। राधा-कृष्ण-लीला का इन्हीं के द्वारा विस्तार होता है।
कभी वे, जैसे खण्डिता दशा में, राधा का पक्ष-समर्थन करके कृष्ण का विरोध करती है। और कभी, जैसे मान की दशा में, कृष्ण का विरोध करती हैं
और कभी कृष्ण के प्रति प्रवृत्ति दिखाते हुए राधा की आलोचना करती है।
परन्तु उन्हें राधा से ईर्ष्या कभी नहीं होती, वे कृष्ण का संग-सुख कभी नहीं चाहतीं,
क्योंकि उन्हें राधा-कृष्ण के प्रेम-मिलन में ही आत्मीय मिलन-सुख की परिपूर्णता का अनुभव हो जाता है।
अत: वे राधा-कृष्ण के मिलन की चेष्टा करती रहती हैं.
‘ब्रह्मवैवर्त्त’पुराण में अष्टसखियाँ
पुराणों में विशेषरूप से ‘ब्रह्मवैवर्त्त’ में अष्टसखियों के नाम किंचित् परिवर्तन से इस प्रकार मिलते हैं:-
1. चन्द्रावली, 2.श्यामा, 3.शैव्या, 4.पद्या, 5.राधा, 6.ललिता, 7.विशाखा, 8.भद्रा.
“श्री श्याम सुन्दर गोस्वामी जी ”
सेवाधिकारी श्री राधा रानी मन्दिर बरसाना
श्री जी बरसाना मण्डल ट्रस्ट (रजि०)
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