राधा की छवि देख
टिप्पणी: अभी राधा रानी अल्हड़ हैं। अभी तो वे कृष्ण के प्रणय-निवेदन का न अर्थ जानती हैं न मर्म। और कृष्ण?वे तो राधा रानी को देखते ही मचल पड़े हैं। लुभा रहे हैं उन्हें। राधा की काली चितवन को अपनी काली काँवर से जोड़ रहे हैं। उन्हें पाने को कुछ भी करने को तत्पर हैं। गा देंगे, बजा देंगे, नाच देंगे, ब्याह कर आँखों का काजल बनाकर भी रख लेंगे! धन्य हो कृष्ण-कन्हैया, धन्य-धन्य!
राधा की छवि देख, मचल गए साँवरिया |
हँस–मुसकाय प्रेम रस चक्खूँ
नैनन में तुझे ऐसे रक्खूँ
ज्यों काजर की रेख,
पड़ेंगी तोसे भाँवरिया ॥
राधा की छवि —–
तू गोरी वृषभान–दुलारी
मैं काला मेरी चितवन कारी
काला ही मेरा भेष
के कारी कामरिया ॥
राधा की छवि —–
मैं राधा तेरे घर आऊँ
अँगना में बाँसुरी बजाऊँ
नृत्य करूँ दिल खोल
कमल-पे जैसे भामरिया ।।
राधा की छवि —–
अपनी सब सखियाँ बुलवा ले
हिलमिल के मोसे नाच नचा ले
गढ़ें प्रेम की मेख
झनन बोले पायलिया ॥
राधा की छवि —–
बरसाने की राधा प्यारी
वृन्दावन के कृष्ण मुरारी
सुख-सागर में खेल तू ग्वालिन गामरिया ॥
राधा की छवि —–