सदाशिव सर्व वरदाता
सदाशिव सर्व वरदाता, दिगम्बर हो तो ऐसा हो,
हरे सब दुःख भक्तों के, दयाकर हो तो ऐसा हो।
शिखर कैलाश के ऊपर, कल्पतरुओं की छाया में,
रमे नित संग गिरिजा के, रमणधर हो तो ऐसा हो।
शीश पर गंग की धारा, सुहाए भाल पर लोचन,
कला मस्तक पे चन्दा की, मनोहर हो तो ऐसा हो।
भयंकर जहर जब निकला, क्षीरसागर के मंथन से,
रखा सब कण्ठ में पीकर, कि विषधर हो तो ऐसा हो।
सिरों को काटकर अपने, किया जब होम रावण ने,
दिया सब राज दुनियाँ का, दिलावर हो तो ऐसा हो।
बनाए बीच सागर के, तीन पुर दैत्य सेना ने,
उड़ाए एक ही शर से, त्रिपुरहर हो तो ऐसा हो।
देवगण दैत्य नर सारे, जपें नित नाम शंकर जो,
वो ब्रह्मानन्द दुनियाँ में, उजागर हो तो ऐसा हो॥