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आइए बृज को फिर से बनाएँ हरा भरा..
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सदाशिव सर्व वरदाता

सदाशिव सर्व वरदातादिगम्बर हो तो ऐसा हो,

       हरे सब दुःख भक्तों केदयाकर हो तो ऐसा हो।

शिखर कैलाश के ऊपर, कल्पतरुओं की छाया में,

       रमे नित संग गिरिजा के, रमणधर हो तो ऐसा हो।

शीश पर गंग की धारासुहाए भाल पर लोचन,

       कला मस्तक पे चन्दा कीमनोहर हो तो ऐसा हो।

भयंकर जहर जब निकलाक्षीरसागर के मंथन से,

       रखा सब कण्ठ में पीकरकि विषधर हो तो ऐसा हो।

सिरों को काटकर अपनेकिया जब होम रावण ने,

       दिया सब राज दुनियाँ कादिलावर हो तो ऐसा हो।

बनाए बीच सागर केतीन पुर दैत्य सेना ने,

       उड़ाए एक ही शर सेत्रिपुरहर हो तो ऐसा हो।

देवगण दैत्य नर सारेजपें नित नाम शंकर जो,

       वो ब्रह्मानन्द दुनियाँ मेंउजागर हो तो ऐसा हो॥

मारे मत मइया

मारे मत मइया, वचन भरवाय लै

वचन भरवाय लै, सौगन्ध खवाय लै।

गंगा की खवाय लै, चाहे जमुना की खवाय लै

क्षीर सागर में मइया ठाड़ो करवाय लै ॥ मारे मत मइया ——

गइया की खवाय लै, चाहे बछड़ा की खवाय लै

नन्द बाबा के आगे ठाड़ो करवाय लै ॥ मारे मत मइया ——

गोपिन की खवाय लै, चाहे ग्वालन की खवाय लै

दाऊ भइया के आगे कान पकराय लै ॥ मारे मत मइया ——

बंसी की खवाय लै, चाहे कामर की खवाय लै

मेरे अपने सिर पे हाथ धर के कहवाय लै ॥ मारे मत मइया ——

इकली घेरी बन में आय

इकली घेरी बन में आय श्याम तूने कैसी ठानी रे |

श्याम मुझे वृन्दावन जाना

     लौट कर बरसाने आना

          हाथ जोड़ूँ मानो कहना

जो मुझे हो जाए देरलड़े द्योरानी-जिठानी रे || इकली घेरी —–

ग्वालिनी मैं समझाऊँ तुझे

     दान तू दधि का दे जा मुझे

          तभी ग्वालिन जाने दूँ तुझे

जो तू नहीं माने तो होगी ऐंचातानी रे || इकली घेरी —–

दान मैंने कभी नहीं दीना

     रोक मेरा मारग क्यों लीना

          बहुत सा ऊधम तुम कीन्हा

आज तलक इस ब्रज में ऐसा हुआ न सानी रे || इकली घेरी —–

ग्वालिनी बातें रही बनाय

     ग्वाल-बालों को लूँ मैं बुलाय

          तेरा सब दधि-माखन लुट जाय

इठला ले तू भलेचले-न तेरी मनमानी रे || इकली घेरी —–

कंस राजा से करूँ गुहार

     बँधा के फिर लगवाऊँ मार

          तेरी ठकुराई देऊँ निकार

जुल्मी फिर तू डरेहरे ना नार बिरानी रे || इकली घेरी —–

कंस क्या बलम लगे तेरा

     वो चूहा क्या कर ले मेरा

          गर कभी उसको जा घेरा

कर दूँगा निर्वंशमिटा दूँ नाम-निशानी रे || इकली घेरी —–

आ गए इतने में सब ग्वाल

     पड़े नैनों में डोरे लाल

          झूम के चले अदा की चाल

लुट गया माखन मारग मेंघर गई खिसियानी रे || इकली घेरी —–

करें लीला जो राधेश्याम

     कौन कर सके बखान तमाम

          जाऊँ बलिहार धन्य ब्रजधाम

कहते सारे ग्वालनन्द का है सैलानी रे || इकली घेरी —–

Shree Ji Barsana Mandal Trust (SJBMT)