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बृज के नंदलाला राधा के सांवरिया
सभी दुःख दूर हुए, जब तेरा नाम लिया

मीरा पुकारी जब गिरिधर गोपाला
ढल गया अमृत में विष का भरा प्याला

ढल गया अमृत में विष का भरा प्याला
ढल गया अमृत में विष का भरा प्याला

कौन मिटाए उसे, जिसे तू राखे पिया
सभी दुःख दूर हुए, जब तेरा नाम लिया

बृज के नंदलाला राधा के सांवरिया

जब तेरी गोकुल पे आया दुख भारी
जब तेरी गोकुल पे आया दुख भारी

एक इशारे से सब विपदा टारी
एक इशारे से सब विपदा टारी

मुड़ गया गोवर्धन तुने जित मोड़ दिया
सभी दुःख दूर हुए, जब तेरा नाम लिया

बृज के नंदलाला राधा के सांवरिया

नैनो में श्याम बसे, मन में बनवारी
नैनो में श्याम बसे, मन में बनवारी

सुध बिसराये गई मुरली की धुन प्यारी
सुध बिसराये गई मुरली की धुन प्यारी

मन के मधुबन में रास रचाए रसिया
सभी दुःख दूर हुए, जब तेरा नाम लिया

बृज के नंदलाला राधा के सांवरिया
सभी दुःख दूर हुए, जब तेरा नाम लिया

भाण्डीरवन का रहस्य:

 

भाण्डीरवन, वृन्दावन से लगभग १० किलोमीटर दूर यमुना पार छायरी गाँव के पास तहसील मॉठ, जिला मथुरा में हैं |

 

गर्ग संहिता के आधार पर भाण्डीरवन में ब्रह्मा जी ने राधा कृष्णा का गन्धर्व विवाह कराया था, इसीलिए यहाँ पर मंदिर में श्री कृष्ण के द्वारा राधा रानी की मांग भरते हुए दर्शन हैं |

 

यहाँ एक ऐसा कुंआ है जिसका रंग सोमवती अमावस्या को दूधिया हो जाता है |

लीलायॆं :

• यहाँ पर गोचारण के समय, श्री कृष्ण और बलराम जी का ग्वाल-
बालो के साथ भोजन-क्रीड़ा कौतुका हैं। 

 

• यहाँ विशाल भाण्डीर-वट की लम्बी-लम्बी शाखाओं पर चढ़कर कृष्ण और सखाओं की, यमुना के पार जाने- आने की क्रीड़ा हैं। 

 

• यहाँ ब्रजाड़ग़नाओ के साथ श्री कृष्ण की मल्ल-क्रीड़ा हैं। 

 

• सखाओं के साथ श्री कृष्ण और बलराम की भोजन-क्रीड़ा के समय गायों और ग्वाल- बालो का मुज्ज्वन में प्रवेश और उनकी दावानल से रक्षा की क्रीड़ा हैं। 

 

• यहाँ वत्सासुर बध की पाप की शुद्धि के लिए श्री कृष्ण द्वारा अपने बेणु से बेणु कूप निर्माण कर उसमे समग्र तीर्थो का आवाहन कर, उसमे स्वंय स्नान द्वारा पवित्र होने की लीला हैं। 

 

• यहाँ प्रलम्बासुर की उद्धार-लीला हैं और समीप ही बंशी वट पर रासलीला हैं |

पाऊँ तिहारो प्रेम किशोरी छकि फिरू में ब्रज की गोरी

सरस किशोरी वयस की थोरी रति रस भोरि

कीजे कृपा की कोर

ब्रज के नंदलाला श्री राधा ज़ू के साँवरिया

सब दुःख दूर हुए जब तेरा नाम लिया

होरी खेलत नंदलाल बृज में, होरी खेलत नंदलाल।
ग्वाल बाल संग रास रचाए, नटखट नन्द गोपाल॥

बाजत ढोलक झांझ मजीरा,
गावत सब मिल आज कबीर।
नाचत दे दे ताल, होरी खेलत नंदलाल…

भर भर मारे रंग पिचकारी,
रंग गए बृज के नर नारी।
उड़त अबीर गुलाल, होरी खेलत नंदलाल…

ऐसी होरी खेली कन्हाई,
यमुना तट पर धूम मचाई।
रास रचे नंदलाल, होरी खेलत नंदलाल…

आज बृज में होली रे रसिया।
होरी रे रसिया, बरजोरी रे रसिया॥

अपने अपने घर से निकसी,
कोई श्यामल कोई गोरी रे रसिया।

कौन गावं केकुंवर कन्हिया,
कौन गावं राधा गोरी रे रसिया।

नन्द गावं के कुंवर कन्हिया,
बरसाने की राधा गोरी रे रसिया।

कौन वरण के कुंवर कन्हिया, 
कौन वरण राधा गोरी रे रसिया।

श्याम वरण के कुंवर कन्हिया प्यारे,
गौर वरण राधा गोरी रे रसिया।

इत ते आए कुंवर कन्हिया,
उत ते राधा गोरी रे रसिया।

कौन के हाथ कनक पिचकारी,
कौन के हाथ कमोरी रे रसिया।

कृष्ण के हाथ कनक पिचकारी,
राधा के हाथ कमोरी रे रसिया।

उडत गुलाल लाल भए बादल,
मारत भर भर झोरी रे रसिया।

अबीर गुलाल के बादल छाए,
धूम मचाई रे सब मिल सखिया।

चन्द्र सखी भज बाल कृष्ण छवि,
चिर जीवो यह जोड़ी रे रसिया।

ब्रज चौरासी कोस यात्रा / Braj Chaurasi Kos Yatra

  • वराह पुराण कहता है कि पृथ्वी पर 66 अरब तीर्थ हैं और वे सभी चातुर्मास में ब्रज में आकर निवास करते हैं। यही वजह है कि व्रज यात्रा करने वाले इन दिनों यहाँ खिंचे चले आते हैं। हज़ारों श्रद्धालु ब्रज के वनों में डेरा डाले रहते हैं।
  • ब्रजभूमि की यह पौराणिक यात्रा हज़ारों साल पुरानी है। चालीस दिन में पूरी होने वाली ब्रज चौरासी कोस यात्रा का उल्लेख वेद-पुराण व श्रुति ग्रंथसंहिता में भी है। कृष्ण की बाल क्रीड़ाओं से ही नहीं, सत युग में भक्त ध्रुव ने भी यही आकर नारद जी से गुरु मन्त्र ले अखंड तपस्या की व ब्रज परिक्रमा की थी।
  • त्रेता युग में प्रभु राम के लघु भ्राता शत्रुघ्न ने मधु पुत्र लवणासुर को मार कर ब्रज परिक्रमा की थी। गली बारी स्थित शत्रुघ्न मंदिर यात्रा मार्ग में अति महत्व का माना जाता है।
  • द्वापर युग में उद्धव जी ने गोपियों के साथ ब्रज परिक्रमा की।
  • कलि युग में जैन और बौद्ध धर्मों के स्तूप बैल्य संघाराम आदि स्थलों के सांख्य इस परियात्रा की पुष्टि करते हैं।
  • 14वीं शताब्दी में जैन धर्माचार्य जिन प्रभु शूरी की में ब्रज यात्रा का उल्लेख आता है।
  • 15वीं शताब्दी में माध्व सम्प्रदाय के आचार्य मघवेंद्र पुरी महाराज की यात्रा का वर्णन है तो
  • 16वीं शताब्दी में महाप्रभु वल्लभाचार्य, गोस्वामी विट्ठलनाथ, चैतन्य मत केसरी चैतन्य महाप्रभु, रूप गोस्वामी, सनातन गोस्वामी, नारायण भट्ट, निम्बार्क संप्रदाय के चतुरानागा आदि ने ब्रज यात्रा की थी।

ब्रज शब्द की परिभाषा

वैदिक संहिताओं तथा रामायण, महाभारत आदि संस्कृत के प्राचीन धर्मग्रंथों में ब्रज शब्द गोशाला, गो-स्थान, गोचर भूमि के अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। ऋग्वेद में यह शब्द गोशाला अथवा गायों के खिरक के रूप में वर्णित है। यजुर्वेद में गायों के चरने के स्थान को ब्रज और गोशाला को गोष्ठ कहा गया है।

 

शुक्ल यजुर्वेद में सुन्दर सींगों वाली गायों के विचरण स्थान से ब्रज का संकेत मिलता है। अथर्ववेद में गोशलाओं से सम्बधित पूरा सूक्त ही प्रस्तुत है। हरिवंशपुराण तथा भागवतपुराण आदि में यह शब्द गोप बस्त के रूप में प्रयुक्त हुआ है। स्कंदपुराण में महर्षि शाण्डिल्य ने ब्रज शब्द का अर्थ वतलाते हुए इसे व्यापक ब्रह्म का रूप कहा है। अत: यह शब्द ब्रज की आध्यात्मिकता से सम्बधित है।

Shree Ji Barsana Mandal Trust (SJBMT)